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पितृ पक्ष 2025: कब है, क्या करें और क्या न करें Pitra Paksh kab hai 2025 aur kya kare aur na kare

पितृ पक्ष 2025: कब है, क्या करें और क्या न करें? पितृ पक्ष कब है और क्या करें पितृ पक्ष पर? (2025 के लिए सम्पूर्ण गाइड) पितृ पक्ष करने से क्या होता है? पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस 16 दिवसीय अवधि में पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं। यदि इस समय विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म किया जाए, तो पितृ दोष समाप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। पितृ पक्ष में किए गए तर्पण और दान से आत्मा को अगला शरीर प्राप्त करने में सहायता मिलती है और मोक्ष की ओर गति होती है। यह कर्म केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है। जो व्यक्ति पितृ पक्ष में श्राद्ध नहीं करता, उसकी कुंडली में पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे जीवन में बाधाएं आती हैं। इसलिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना न केवल आत्मिक शांति के लिए आवश्यक है, बल्कि यह परिवार की...

बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की सरल व्याख्या: कर्मचारियों के अधिकार, नियम और समय-सीमा हिंदी में Simplified Explanation of the Payment of Bonus Act, 1965: Employee Rights, Rules, and Timelines


🎁 बोनस क्या है और क्यों दिया जाता है?

"बोनस" शब्द की कोई साफ परिभाषा किसी कानून में नहीं दी गई है, लेकिन आमतौर पर इसका मतलब होता है:

कर्ज पर मिलने वाले ब्याज से ज्यादा पैसा

शेयरधारकों को अतिरिक्त लाभ

बीमा धारकों को मुनाफे में हिस्सा

कर्मचारियों को उनकी मेहनत के अलावा मिलने वाला अतिरिक्त भुगतान

या कभी-कभी किसी को खुश करने के लिए दिया गया तोहफा

 बोनस देने का असली मकसद यह है कि जो मजदूरी दी जाती है और जो एक इंसान को ठीक से जीने के लिए मिलनी चाहिए (जीवनयापन योग्य मजदूरी), उन दोनों के बीच का फर्क थोड़ा कम किया जा सके।


 भारत (INDIA) में बोनस कानून का इतिहास 

भारत में कर्मचारियों को बोनस देने की परंपरा प्रथम विश्व युद्ध (1917) के समय शुरू हुई थी।

उस समय कुछ कपड़ा मिलों ने अपने श्रमिकों को मजदूरी का 10% युद्ध बोनस दिया था।

यह भुगतान भारत रक्षा नियमों के नियम 81A के तहत किया गया था।

बाद में, औद्योगिक विवादों में भी बोनस की मांग उठने लगी।

📅 बोनस कानून बनने की प्रक्रिया:

1950: श्रम अपीलीय न्यायाधिकरण ने बोनस तय करने के लिए एक फॉर्मूला बनाया।
1959: उस फॉर्मूले को सुधारने की मांग उठी।
मार्च/अप्रैल 1960: दिल्ली में हुई बैठक में तय हुआ कि बोनस पर विचार करने के लिए एक आयोग बनाया जाए।
6 दिसंबर 1960: सरकार ने बोनस आयोग नियुक्त किया।
मई 1965: सरकार ने बोनस भुगतान अध्यादेश, 1965 लागू किया।
25 सितंबर 1965: इसे स्थायी रूप से बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के रूप में कानून बना दिया गया।

 इस अधिनियम के तहत कर्मचारियों को न्यूनतम और अधिकतम बोनस देने के नियम तय किए गए, जिससे मजदूरी और जीवनयापन योग्य आय के बीच का अंतर थोड़ा कम किया जा सके।

बोनस पाने की योग्यता 

अगर कोई कर्मचारी किसी संस्थान में एक साल के दौरान कम से कम 30 दिन काम करता है,

तो वह बोनस पाने का हकदार होता है,

बशर्ते कि बाकी नियमों का पालन किया गया हो।

यानी अगर किसी कर्मचारी ने पूरे साल काम नहीं किया, लेकिन 30 कार्यदिवस पूरे किए हैं,

तो उसे बोनस मिलना कानूनन जरूरी है।


 किन हालातों में कर्मचारी बोनस पाने के योग्य नहीं होता

अगर कोई कर्मचारी गंभीर गलत काम करता है और उसे उसकी नौकरी से निकाल दिया जाता है,
तो वह बोनस पाने का हकदार नहीं रहेगा।

 ऐसे मामलों में बोनस नहीं मिलेगा:

1. धोखाधड़ी करने पर
2. कंपनी या फैक्ट्री में उपद्रव या हिंसक व्यवहार करने पर
3. कंपनी की किसी संपत्ति की चोरी, नुकसान या तोड़फोड़ करने पर

 यानी अगर कर्मचारी को इन कारणों से बर्खास्त किया गया है, तो उसे उस साल का बोनस नहीं मिलेगा, चाहे उसने कितने भी दिन काम किया हो।

 न्यूनतम बोनस का भुगतान

हर नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को हर साल न्यूनतम बोनस देना जरूरी है, चाहे उस साल कंपनी को मुनाफा हुआ हो या नहीं।

 कितना बोनस देना जरूरी है?

कर्मचारी की सालभर की कमाई का 8.33%, या

₹100, इनमें से जो भी ज्यादा हो, वही देना होगा। अगर कर्मचारी की उम्र 15 साल से कम है:

तो उसे ₹60 या 8.33%, जो भी ज्यादा हो, मिलेगा।

 यह नियम 1979 से शुरू होकर हर साल लागू होता है, और यह बोनस कानून के बाकी नियमों के अधीन होता है।


अधिकतम बोनस का भुगतान 

अगर किसी साल कंपनी को अच्छा मुनाफा (आबंटन योग्य अधिशेष) हुआ है और वह मुनाफा न्यूनतम बोनस से ज्यादा है, तो नियोक्ता को न्यूनतम बोनस से ज्यादा बोनस देना होगा,nलेकिन एक सीमा तक।

 बोनस की अधिकतम सीमा क्या है?

कर्मचारी को उस साल की कमाई (वेतन या मजदूरी) का अधिकतम 20% तक बोनस दिया जा सकता है।

 इससे ज्यादा बोनस देने की कानूनी बाध्यता नहीं है।

 बोनस की गणना कैसे होगी?

बोनस की गणना करते समय धारा 15 के अनुसार कुछ खर्चों और कटौतियों को ध्यान में रखा जाएगा।

1. बोनस की ऊपरी सीमा कर्मचारी की सालभर की कमाई का 20% है।

2. अगर कंपनी को बहुत ज्यादा मुनाफा हुआ हो, तब भी कर्मचारी 20% से ज्यादा बोनस का दावा नहीं कर सकते।


अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए बोनस की गणना 

अगर किसी कर्मचारी का मासिक वेतन ₹2,500 से ज्यादा है, तो बोनस की गणना करते समय माना जाएगा कि उसका वेतन ₹2,500 प्रति माह ही है।

 इसका मतलब यह है कि:

चाहे किसी कर्मचारी का वेतन ₹5,000 या ₹10,000 हो,

बोनस की गणना ₹2,500 के आधार पर ही होगी,

ताकि सभी कर्मचारियों के लिए एक समान गणना हो सके।


कुछ मामलों में बोनस में कटौती

अगर कोई कर्मचारी पूरे साल काम नहीं करता है, यानि उसने सभी कार्य दिवसों में काम नहीं किया, तो उसका न्यूनतम बोनस भी कम किया जा सकता है।

कैसे?

अगर ₹100 (या 15 साल से कम उम्र के लिए ₹60) का बोनस  उस कर्मचारी के काम किए गए दिनों के हिसाब से 8.33% से ज्यादा हो जाता है,

तो बोनस को आनुपातिक रूप से घटा दिया जाएगा।

 उदाहरण:

अगर किसी कर्मचारी ने सिर्फ 60 दिन काम किया है, तो उसे पूरे ₹100 नहीं मिलेंगे, बल्कि उतने ही प्रतिशत के हिसाब से बोनस मिलेगा जितना उसके काम के दिनों के अनुसार बनता है।

बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के धारा 13 के अनुसार कार्य दिवसों की गिनती कैसे होती है 

जब यह देखा जाता है कि किसी कर्मचारी ने कितने दिन काम किया, तो कुछ ऐसे दिन भी काम के दिन माने जाते हैं, जिनमें कर्मचारी वास्तव में काम पर नहीं आया हो, लेकिन फिर भी वह बोनस के लिए योग्य माना जाएगा।

 कौन-कौन से दिन “कार्य दिवस” माने जाएंगे?

1. (क) अगर कर्मचारी को किसी कानून या समझौते के तहत अनुज्ञात रूप से नौकरी से हटाया गया हो,
जैसे:
औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947
या कोई अन्य लागू कानून

2. (ख) अगर कर्मचारी वेतन या मजदूरी सहित छुट्टी पर रहा हो  (जैसे सालाना छुट्टी, मेडिकल लीव आदि)

3. (ग) अगर कर्मचारी काम के दौरान या काम के कारण किसी दुर्घटना में घायल होकर अस्थायी रूप से अक्षम हो गया हो

4. (घ) अगर महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश पर रही हो और उसे उस दौरान वेतन या मजदूरी मिल रही हो

इन सभी दिनों को कार्य दिवसों की गिनती में शामिल किया जाएगा, ताकि कर्मचारी को बोनस की गणना में पूरा लाभ मिल सके।

आबंटनीय अधिशेष का उपयोग और आगे ले जाना 

जब किसी साल कंपनी को इतना मुनाफा (आबंटनीय अधिशेष) होता है कि वह कर्मचारियों को अधिकतम बोनस (20%) देने के बाद भी बच जाता है,

तो उस बचे हुए मुनाफे को अगले सालों के लिए बचाकर रखा जा सकता है।

 कैसे काम करता है यह नियम?

 (1) अगर अधिशेष ज्यादा है:

कर्मचारियों को अधिकतम बोनस (20%) देने के बाद भी पैसा बचता है,

तो वह बचा हुआ पैसा अगले सालों में बोनस देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है,

यह पैसा चार साल तक आगे ले जाया जा सकता है,

और चौथी अनुसूची में बताए गए तरीके से इसका उपयोग होगा।

 (2) अगर अधिशेष कम है या नहीं है:

अगर किसी साल कंपनी को मुनाफा नहीं हुआ,

या मुनाफा इतना कम है कि न्यूनतम बोनस (₹100 या ₹60) भी नहीं दिया जा सकता,

और पहले से कोई बचा हुआ अधिशेष भी नहीं है,

तो उस कमी को अगले सालों में पूरा करने के लिए आगे ले जाया जाएगा,

यह भी चार साल तक किया जा सकता है।

 (3) अन्य मामलों में:

अगर कोई मामला ऊपर की दो स्थितियों में नहीं आता,

तो भी चौथी अनुसूची में बताए गए नियमों के अनुसार अधिशेष को आगे ले जाने और उपयोग करने का तरीका लागू होगा।


New Company , Organization,  प्रतिष्ठानों के संबंध में विशेष प्रावधान

अगर कोई कंपनी या प्रतिष्ठान बोनस कानून लागू होने से पहले या बाद में नया शुरू हुआ है,

तो उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को बोनस देने के लिए कुछ विशेष नियम लागू होते हैं,

जो तीन चरणों में बांटे गए हैं: (1क), (1ख), और (1ग)।


 (1क) पहले 5 साल – लाभ होने पर ही बोनस

जब नया प्रतिष्ठान शुरू होता है और नियोक्ता माल बेचता है या सेवा देता है,

तो पहले 5 लेखा वर्षों में बोनस तभी देना होगा जब कंपनी को लाभ हुआ हो।

बोनस की गणना बोनस कानून के अनुसार होगी,

लेकिन धारा 15 (कटौतियों की गणना) लागू नहीं होगी।

 मतलब:

अगर कंपनी को नुकसान हुआ है, तो बोनस देना जरूरी नहीं। अगर लाभ हुआ है, तो बोनस देना होगा, लेकिन कुछ खर्चों की कटौती नहीं की जाएगी।


 (1ख) छठे और सातवें साल – कुछ कटौतियों के साथ बोनस

छठे और सातवें लेखा वर्ष में,

जब कंपनी माल बेचती है या सेवा देती है,

तो बोनस की गणना में धारा 15 के नियम लागू होंगे, लेकिन कुछ संशोधनों के साथ।

यानी अब बोनस देने की प्रक्रिया थोड़ी सख्त हो जाती है, और कंपनी को मुनाफे में से कुछ खर्चों की कटौती करके बोनस देना होता है।

 छठा और सातवां लेखा वर्ष: अधिशेष का सेट-ऑफ कैसे होता है – आसान भाषा में समझिए
जब कोई नया प्रतिष्ठान शुरू होता है, तो उसके पहले कुछ वर्षों में बोनस देने के नियम थोड़े अलग होते हैं।
छठे और सातवें साल में बोनस की गणना करते समय कंपनी को पिछले सालों के अधिशेष (मुनाफे या घाटे) को ध्यान में रखना होता है।

 (i) छठा लेखा वर्ष:

बोनस की गणना करते समय कंपनी को पांचवें और छठे साल के अधिशेष या घाटे को देखना होगा।
अगर किसी साल में अधिशेष ज्यादा था और अगले साल में कम, तो उसे आपस में समायोजित (set-off या carry forward) किया जाएगा।
यह समायोजन चौथी अनुसूची में बताए गए तरीके से किया जाएगा।
उदाहरण:
अगर पांचवें साल में ₹50,000 अधिशेष था और छठे साल में ₹20,000 घाटा हुआ, तो कंपनी ₹30,000 का अधिशेष आगे ले जा सकती है।

 (ii) सातवां लेखा वर्ष:

इस साल की गणना में पांचवें, छठे और सातवें साल के अधिशेष या घाटे को ध्यान में रखा जाएगा।
फिर से, यह समायोजन चौथी अनुसूची के अनुसार किया जाएगा।

 इसका उद्देश्य यह है कि कंपनी को बोनस देने में स्थिरता और न्याय बना रहे, और कर्मचारियों को उनके हिस्से का बोनस सही तरीके से मिले, बिना कंपनी पर अचानक बोझ डाले।

 प्रथागत या अंतरिम बोनस का समायोजन 

अगर किसी साल में नियोक्ता ने कर्मचारी को पहले से कोई पूजा बोनस, त्योहार बोनस या अंतरिम बोनस दे दिया है, तो वह राशि कानून के तहत देय बोनस में से घटाई जा सकती है।

 दो मुख्य स्थितियाँ:

 (क) पूजा या परंपरागत बोनस:

अगर नियोक्ता ने कर्मचारी को पूजा बोनस या कोई अन्य परंपरागत बोनस दिया है, तो वह राशि कानूनी बोनस में से घटाई जा सकती है।

 (ख) अंतरिम भुगतान:

अगर नियोक्ता ने बोनस की तय तारीख से पहले ही कुछ हिस्सा दे दिया है, तो वह भी अंतिम बोनस में समायोजित किया जा सकता है।

 इसका मतलब यह है कि कर्मचारी को पूरा बोनस नहीं मिलेगा, बल्कि उसे बचे हुए हिस्से का भुगतान किया जाएगा, क्योंकि पहले दी गई राशि को कुल बोनस में से घटा दिया जाएगा।


 बोनस भुगतान की समय-सीमा

बोनस की सभी राशि नकद में दी जानी चाहिए, और उसका भुगतान निश्चित समय के भीतर करना जरूरी है।

 (क) अगर बोनस को लेकर कोई विवाद चल रहा है:

और वह विवाद धारा 22 के तहत किसी प्राधिकारी के पास लंबित है,

तो जैसे ही उस विवाद का फैसला लागू हो जाता है या दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है,

नियोक्ता को एक महीने के भीतर कर्मचारी को बोनस का भुगतान करना होगा।

 मतलब यह है कि:

विवाद खत्म होने के बाद देरी नहीं की जा सकती,

और बोनस का भुगतान नकद में तय समय पर करना अनिवार्य है।

अगर बोनस को लेकर कोई विवाद नहीं है, तो नियोक्ता को लेखा वर्ष खत्म होने के बाद 8 महीने के भीतर
कर्मचारी को बोनस नकद में देना जरूरी है।

 लेकिन अगर नियोक्ता को किसी कारण से देरी करनी हो:

तो वह समुचित सरकार या उसके द्वारा नियुक्त प्राधिकारी से आवेदन करके बोनस भुगतान की समय-सीमा को बढ़ाने की अनुमति मांग सकता है।
यह अनुमति तभी मिलेगी जब:
नियोक्ता के पास पर्याप्त कारण हो
और सरकार को लगे कि विलंब उचित है
 बोनस भुगतान की समय-सीमा अधिकतम दो साल तक बढ़ाई जा सकती है,
लेकिन उससे ज्यादा नहीं।

  बोनस की वसूली का अधिकार – आसान भाषा में समझिए

अगर किसी कर्मचारी को उसके Employer नियोक्ता से बोनस की कोई राशि देनी बाकी है, और वह राशि किसी समझौते, पंचाट या कानूनी करार के तहत तय की गई है, तो कर्मचारी के पास उसे वसूलने का कानूनी अधिकार होता है।

 कौन आवेदन कर सकता है?

कर्मचारी स्वयं

या कोई व्यक्ति जिसे कर्मचारी ने लिखित रूप से अधिकृत किया हो

या अगर कर्मचारी की मृत्यु हो गई हो, तो उसका उत्तराधिकारी या नामित व्यक्ति

आवेदन कैसे और कहां करना है?

ये लोग समुचित सरकार को आवेदन कर सकते हैं

सरकार या उसका नियुक्त अधिकारी अगर यह मान ले कि वाकई में राशि देय है, तो वह कलेक्टर को प्रमाणपत्र जारी करेगा फिर कलेक्टर उस राशि को भू-राजस्व की तरह वसूल करेगा, यानि जैसे सरकार बकाया टैक्स वसूलती है, वैसे ही यह बोनस भी वसूला जाएगा।

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