बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की सरल व्याख्या: कर्मचारियों के अधिकार, नियम और समय-सीमा हिंदी में Simplified Explanation of the Payment of Bonus Act, 1965: Employee Rights, Rules, and Timelines
🎁 बोनस क्या है और क्यों दिया जाता है?
"बोनस" शब्द की कोई साफ परिभाषा किसी कानून में नहीं दी गई है, लेकिन आमतौर पर इसका मतलब होता है:
• कर्ज पर मिलने वाले ब्याज से ज्यादा पैसा
• शेयरधारकों को अतिरिक्त लाभ
• बीमा धारकों को मुनाफे में हिस्सा
• कर्मचारियों को उनकी मेहनत के अलावा मिलने वाला अतिरिक्त भुगतान
• या कभी-कभी किसी को खुश करने के लिए दिया गया तोहफा
बोनस देने का असली मकसद यह है कि जो मजदूरी दी जाती है और जो एक इंसान को ठीक से जीने के लिए मिलनी चाहिए (जीवनयापन योग्य मजदूरी), उन दोनों के बीच का फर्क थोड़ा कम किया जा सके।
भारत (INDIA) में बोनस कानून का इतिहास
भारत में कर्मचारियों को बोनस देने की परंपरा प्रथम विश्व युद्ध (1917) के समय शुरू हुई थी।
उस समय कुछ कपड़ा मिलों ने अपने श्रमिकों को मजदूरी का 10% युद्ध बोनस दिया था।
यह भुगतान भारत रक्षा नियमों के नियम 81A के तहत किया गया था।
बाद में, औद्योगिक विवादों में भी बोनस की मांग उठने लगी।
📅 बोनस कानून बनने की प्रक्रिया:
बोनस पाने की योग्यता
अगर कोई कर्मचारी किसी संस्थान में एक साल के दौरान कम से कम 30 दिन काम करता है,
तो वह बोनस पाने का हकदार होता है,
बशर्ते कि बाकी नियमों का पालन किया गया हो।
यानी अगर किसी कर्मचारी ने पूरे साल काम नहीं किया, लेकिन 30 कार्यदिवस पूरे किए हैं,
तो उसे बोनस मिलना कानूनन जरूरी है।
किन हालातों में कर्मचारी बोनस पाने के योग्य नहीं होता
न्यूनतम बोनस का भुगतान
हर नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को हर साल न्यूनतम बोनस देना जरूरी है, चाहे उस साल कंपनी को मुनाफा हुआ हो या नहीं।
कितना बोनस देना जरूरी है?
• कर्मचारी की सालभर की कमाई का 8.33%, या
• ₹100, इनमें से जो भी ज्यादा हो, वही देना होगा। अगर कर्मचारी की उम्र 15 साल से कम है:
• तो उसे ₹60 या 8.33%, जो भी ज्यादा हो, मिलेगा।
यह नियम 1979 से शुरू होकर हर साल लागू होता है, और यह बोनस कानून के बाकी नियमों के अधीन होता है।
अधिकतम बोनस का भुगतान
अगर किसी साल कंपनी को अच्छा मुनाफा (आबंटन योग्य अधिशेष) हुआ है और वह मुनाफा न्यूनतम बोनस से ज्यादा है, तो नियोक्ता को न्यूनतम बोनस से ज्यादा बोनस देना होगा,nलेकिन एक सीमा तक।
बोनस की अधिकतम सीमा क्या है?
• कर्मचारी को उस साल की कमाई (वेतन या मजदूरी) का अधिकतम 20% तक बोनस दिया जा सकता है।
इससे ज्यादा बोनस देने की कानूनी बाध्यता नहीं है।
बोनस की गणना कैसे होगी?
• बोनस की गणना करते समय धारा 15 के अनुसार कुछ खर्चों और कटौतियों को ध्यान में रखा जाएगा।
1. बोनस की ऊपरी सीमा कर्मचारी की सालभर की कमाई का 20% है।
2. अगर कंपनी को बहुत ज्यादा मुनाफा हुआ हो, तब भी कर्मचारी 20% से ज्यादा बोनस का दावा नहीं कर सकते।
अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए बोनस की गणना
अगर किसी कर्मचारी का मासिक वेतन ₹2,500 से ज्यादा है, तो बोनस की गणना करते समय माना जाएगा कि उसका वेतन ₹2,500 प्रति माह ही है।
इसका मतलब यह है कि:
• चाहे किसी कर्मचारी का वेतन ₹5,000 या ₹10,000 हो,
• बोनस की गणना ₹2,500 के आधार पर ही होगी,
• ताकि सभी कर्मचारियों के लिए एक समान गणना हो सके।
कुछ मामलों में बोनस में कटौती
अगर कोई कर्मचारी पूरे साल काम नहीं करता है, यानि उसने सभी कार्य दिवसों में काम नहीं किया, तो उसका न्यूनतम बोनस भी कम किया जा सकता है।
कैसे?
• अगर ₹100 (या 15 साल से कम उम्र के लिए ₹60) का बोनस उस कर्मचारी के काम किए गए दिनों के हिसाब से 8.33% से ज्यादा हो जाता है,
• तो बोनस को आनुपातिक रूप से घटा दिया जाएगा।
उदाहरण:
अगर किसी कर्मचारी ने सिर्फ 60 दिन काम किया है, तो उसे पूरे ₹100 नहीं मिलेंगे, बल्कि उतने ही प्रतिशत के हिसाब से बोनस मिलेगा जितना उसके काम के दिनों के अनुसार बनता है।
बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के धारा 13 के अनुसार कार्य दिवसों की गिनती कैसे होती है
कौन-कौन से दिन “कार्य दिवस” माने जाएंगे?
आबंटनीय अधिशेष का उपयोग और आगे ले जाना
जब किसी साल कंपनी को इतना मुनाफा (आबंटनीय अधिशेष) होता है कि वह कर्मचारियों को अधिकतम बोनस (20%) देने के बाद भी बच जाता है,
तो उस बचे हुए मुनाफे को अगले सालों के लिए बचाकर रखा जा सकता है।
कैसे काम करता है यह नियम?
(1) अगर अधिशेष ज्यादा है:
• कर्मचारियों को अधिकतम बोनस (20%) देने के बाद भी पैसा बचता है,
• तो वह बचा हुआ पैसा अगले सालों में बोनस देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है,
• यह पैसा चार साल तक आगे ले जाया जा सकता है,
• और चौथी अनुसूची में बताए गए तरीके से इसका उपयोग होगा।
(2) अगर अधिशेष कम है या नहीं है:
• अगर किसी साल कंपनी को मुनाफा नहीं हुआ,
• या मुनाफा इतना कम है कि न्यूनतम बोनस (₹100 या ₹60) भी नहीं दिया जा सकता,
• और पहले से कोई बचा हुआ अधिशेष भी नहीं है,
• तो उस कमी को अगले सालों में पूरा करने के लिए आगे ले जाया जाएगा,
• यह भी चार साल तक किया जा सकता है।
(3) अन्य मामलों में:
• अगर कोई मामला ऊपर की दो स्थितियों में नहीं आता,
• तो भी चौथी अनुसूची में बताए गए नियमों के अनुसार अधिशेष को आगे ले जाने और उपयोग करने का तरीका लागू होगा।
New Company , Organization, प्रतिष्ठानों के संबंध में विशेष प्रावधान
अगर कोई कंपनी या प्रतिष्ठान बोनस कानून लागू होने से पहले या बाद में नया शुरू हुआ है,
तो उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को बोनस देने के लिए कुछ विशेष नियम लागू होते हैं,
जो तीन चरणों में बांटे गए हैं: (1क), (1ख), और (1ग)।
(1क) पहले 5 साल – लाभ होने पर ही बोनस
• जब नया प्रतिष्ठान शुरू होता है और नियोक्ता माल बेचता है या सेवा देता है,
• तो पहले 5 लेखा वर्षों में बोनस तभी देना होगा जब कंपनी को लाभ हुआ हो।
• बोनस की गणना बोनस कानून के अनुसार होगी,
लेकिन धारा 15 (कटौतियों की गणना) लागू नहीं होगी।
मतलब:
अगर कंपनी को नुकसान हुआ है, तो बोनस देना जरूरी नहीं। अगर लाभ हुआ है, तो बोनस देना होगा, लेकिन कुछ खर्चों की कटौती नहीं की जाएगी।
(1ख) छठे और सातवें साल – कुछ कटौतियों के साथ बोनस
• छठे और सातवें लेखा वर्ष में,
• जब कंपनी माल बेचती है या सेवा देती है,
• तो बोनस की गणना में धारा 15 के नियम लागू होंगे, लेकिन कुछ संशोधनों के साथ।
यानी अब बोनस देने की प्रक्रिया थोड़ी सख्त हो जाती है, और कंपनी को मुनाफे में से कुछ खर्चों की कटौती करके बोनस देना होता है।
(i) छठा लेखा वर्ष:
(ii) सातवां लेखा वर्ष:
प्रथागत या अंतरिम बोनस का समायोजन
अगर किसी साल में नियोक्ता ने कर्मचारी को पहले से कोई पूजा बोनस, त्योहार बोनस या अंतरिम बोनस दे दिया है, तो वह राशि कानून के तहत देय बोनस में से घटाई जा सकती है।
दो मुख्य स्थितियाँ:
(क) पूजा या परंपरागत बोनस:
• अगर नियोक्ता ने कर्मचारी को पूजा बोनस या कोई अन्य परंपरागत बोनस दिया है, तो वह राशि कानूनी बोनस में से घटाई जा सकती है।
(ख) अंतरिम भुगतान:
• अगर नियोक्ता ने बोनस की तय तारीख से पहले ही कुछ हिस्सा दे दिया है, तो वह भी अंतिम बोनस में समायोजित किया जा सकता है।
इसका मतलब यह है कि कर्मचारी को पूरा बोनस नहीं मिलेगा, बल्कि उसे बचे हुए हिस्से का भुगतान किया जाएगा, क्योंकि पहले दी गई राशि को कुल बोनस में से घटा दिया जाएगा।
बोनस भुगतान की समय-सीमा
बोनस की सभी राशि नकद में दी जानी चाहिए, और उसका भुगतान निश्चित समय के भीतर करना जरूरी है।
(क) अगर बोनस को लेकर कोई विवाद चल रहा है:
• और वह विवाद धारा 22 के तहत किसी प्राधिकारी के पास लंबित है,
• तो जैसे ही उस विवाद का फैसला लागू हो जाता है या दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है,
• नियोक्ता को एक महीने के भीतर कर्मचारी को बोनस का भुगतान करना होगा।
मतलब यह है कि:
• विवाद खत्म होने के बाद देरी नहीं की जा सकती,
• और बोनस का भुगतान नकद में तय समय पर करना अनिवार्य है।
लेकिन अगर नियोक्ता को किसी कारण से देरी करनी हो:
बोनस की वसूली का अधिकार – आसान भाषा में समझिए
अगर किसी कर्मचारी को उसके Employer नियोक्ता से बोनस की कोई राशि देनी बाकी है, और वह राशि किसी समझौते, पंचाट या कानूनी करार के तहत तय की गई है, तो कर्मचारी के पास उसे वसूलने का कानूनी अधिकार होता है।
कौन आवेदन कर सकता है?
• कर्मचारी स्वयं
• या कोई व्यक्ति जिसे कर्मचारी ने लिखित रूप से अधिकृत किया हो
• या अगर कर्मचारी की मृत्यु हो गई हो, तो उसका उत्तराधिकारी या नामित व्यक्ति
आवेदन कैसे और कहां करना है?
• ये लोग समुचित सरकार को आवेदन कर सकते हैं
• सरकार या उसका नियुक्त अधिकारी अगर यह मान ले कि वाकई में राशि देय है, तो वह कलेक्टर को प्रमाणपत्र जारी करेगा फिर कलेक्टर उस राशि को भू-राजस्व की तरह वसूल करेगा, यानि जैसे सरकार बकाया टैक्स वसूलती है, वैसे ही यह बोनस भी वसूला जाएगा।
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